राजद्रोह कानून और अभिव्यक्ति की आजादी
सरकार की आलोचना और राज्यद्रोह
सबसे पहले यह समझने की दरकार है कि सरकार की आलोचना राजद्रोह नहीं है। मजबूत लोकतंत्र के लिए आलोचना अति आवश्यक है। सरकारी आती है जाती हैं जो कि राज्य बना रहता है। राज्य संविधान से चलता है परंतु देश एक भावना है। आता कई बार सरकार अगर गलत करें तो उसकी आलोचना करना उसका विरोध करना सच्चा राष्ट्रवाद है। साथ ही ये आलोचना हिंसक नहीं होनी चाहिए। लोकतंत्र में हिंसक और हिंसा भड़काने वाली व्यक्ति की कोई जगह नहीं है। स्वस्थ आलोचना की हमेशा तारीफ होनी चाहिए। भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जॉर्ज फर्नांडिस, अटल बिहारी वाजपेई चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं का अहम योगदान है जो सरकार की गलत नीतियों के कट्टर आलोचक थे।
कोरोना और टूट कर घर लौटी जिंदगी।
वह हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर जाने की कोशिश कौन भूल सकता है। कौन भूल सकता है उस मार्मिक दृश्य को, वह बेबसी वह हताशा वह सब खो जाने का डर चेहरे से साफ नजर आते थे। दूसरे कोरोना के लहर ने इस बेबसी की तस्वीर में और अधिक स्याह रंग भर दिया।
एकांत से कैवल्य तक : कोरोना काल में जैन दर्शन की प्रासंगिकता
जैन दर्शन में कैवल्य का स्थान सर्वोपरि है। जैन दर्शन के अनुसार जीव का लक्ष्य कैवल्य अवस्था को प्राप्त करना ही है, इस अवस्था के प्राप्त होने पर जीव सर्व सुखी हो जाता है, जिसे जैन दर्शन में अनंत सुख शब्द से अभिहित किया गया है। अरिहंत और सिद्ध अवस्था ही ऐसी अवस्था है जहाँ पर जीव कैवल्य के चरम को प्राप्त हो जाता है। सुख की खोज में न मात्र मनुष्य अपितु जीव मात्र अहर्निश प्रयत्नशील रहता है, किंतु सुख प्राप्ति के उपाय विपरीत होने के कारण वह दुखों की ओर ही बढ़ता चला जाता है। जैन मान्यता के अनुसार रत्नत्रय का मार्ग ही सुख की खोज का सर्वोत्तम उपाय है। श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र जब तक सम्यक नहीं हो जाते तब तक जीव कैवल्य स्वरूप की पहचान नहीं कर सकता। कैवल्य की पूर्णता अरिहंत और सिद्ध अवस्था में होती है किंतु इसका प्रारम्भ चतुर्थ गुणस्थान से हो जाता है, जहाँ पर जीव की श्रद्धा मिथ्या से सम्यक् हो जाती है।
लॉकडाउन में जीवन को भरपूर जीने की मनोवैज्ञानिक कुंजी
रख्यात अमेरिकी कलाकार एंडी वारहॉल का कथन है “हमेशा कहा जाता है कि समय चीजों को बदलता है, लेकिन आपको वास्तव में उन्हें खुद को बदलना होगा”.
गौतम बुद्ध पारंपरिक या मौलिक ?
गौतम बुद्ध पारंपरिक नहीं, मौलिक हैं। गौतम बुद्ध किसी परंपरा, किसी लीक को नहीं पीटते हैं। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि अतीत के ऋषियों ने ऐसा कहा था, इसलिए मान लो। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि वेद में ऐसा लिखा है, इसलिए मान लो। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि मैं कहता हूं इसलिए मान लो। वे कहते हैं, जब तक तुम न जान लो, मानना मत।
कोविड- 19, वर्गवाद एवं सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
इस धरती का सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य अपने द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं को देखकर गर्व करता है और उस पर इतराता है। परंतु यही गर्व जब घमंड में परिवर्तित हो जाता है जब वह प्रकृति द्वारा बनाई गई व्यवस्था को चुनौती देने लगता है और प्रकृति के नियमों में बाधा उत्पन्न करता है।