Online application are invited for the post of Assistant Professors in various state universities. Total seats in Philosophy: 9 Last Date for Application: 14/03/2021 Click here to Apply

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जैन दर्शन में कैवल्य का स्थान सर्वोपरि है। जैन दर्शन के अनुसार जीव का लक्ष्य कैवल्य अवस्था को प्राप्त करना ही है, इस अवस्था के प्राप्त होने पर जीव सर्व सुखी हो जाता है, जिसे जैन दर्शन में अनंत सुख शब्द से अभिहित किया गया है। अरिहंत और सिद्ध अवस्था ही ऐसी अवस्था है जहाँ पर जीव कैवल्य के चरम को प्राप्त हो जाता है। सुख की खोज में न मात्र मनुष्य अपितु जीव मात्र अहर्निश प्रयत्नशील रहता है, किंतु सुख प्राप्ति के उपाय विपरीत होने के कारण वह दुखों की ओर ही बढ़ता चला जाता है। जैन मान्यता के अनुसार रत्नत्रय का मार्ग ही सुख की खोज का सर्वोत्तम उपाय है। श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र जब तक सम्यक नहीं हो जाते तब तक जीव कैवल्य स्वरूप की पहचान नहीं कर सकता। कैवल्य की पूर्णता अरिहंत और सिद्ध अवस्था में होती है किंतु इसका प्रारम्भ चतुर्थ गुणस्थान से हो जाता है, जहाँ पर जीव की श्रद्धा मिथ्या से सम्यक् हो जाती है।